फ़ितरत-ए-धूर्त जुबां पे दिलकश दिलफरेबी बातों का शहद, दिल में जहर-ओ-फरेब का समंदर हो ॥ मुस्कराहट के साथ फेरते हो नफरती तिलिस्म, सोचता हूँ कितने ऊपर औ कितने जमीं के अन्दर हो ॥ फूलों की डाल से दिखाई देते हो लेकिन, यकीन से लपेटा हुआ विशाक्त तेजाबी खन्जर हो ॥ ये दुनिया ढ़ल चुकी है तुम भेड़ियों के लिए, कोई नहीं जानता तुम किसकी खाल के अन्दर हो ।। वो वेचारे पीटते रहें ढ़ोल शराफ़त सच्चाई का, कौन पूछता अब उनको तुम आज के सिकन्दर हो ।। @ दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”
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जब मैं तुमसे प्रश्न करूँगा
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जब मैं तुमसे प्रश्न करूँगा , मुझे पता था यही कहोगे, साँसे तन से भारी होंगी, रोक रखोगे, बोझ सहोगे। शब्दों से परहेज़ तुम्हें है , शब्दों के संग नहीं रहोगे , तुम तो जादूगर हो कोई , आँखों से मन की बात कहोगे। शब्द किये हैं कैद तुम्ही ने , अक्षर डिबिया में रक्खे हैं , बेचारों को दो आज़ादी, कब तक इनको कैद रखोगे। होंठ सिये मत बैठे रहना , कब तक विष का पान करोगे , इंतज़ार है अब उस पल का, अपने अधरों को गति तुम दोगे। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"