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Showing posts from April, 2023

नील पदम् के बालगीत (Neel Padam ke Balgeet)

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छुटकी चिंटू पैदल पैदल, जाते थे स्कूल, बीच सड़क तो पक्की थी पर, अगल-बगल थी धूल, रस्ते में कंकण दिख जाता, पैर मार लुढ़काते, लुढ़काते लुढ़काते पत्थर, शाला से घर लाते, सुबह-सुबह तो जल्दी होती, रहती शरारत भूल, लेकिन शाम को सड़क से ज्यादा, भाती उनको धूल, एक दिवस जब उन्होंने देखा, एक झाड़ी के पीछे, सड़क किनारे स्वान के शिशु थे, अपनी पलकें मींचे, आकर्षण था बहुत ही उनमें, सोचा उन्हें उठाएं, दिखलाएं सब बच्चों को फिर, अपने घर ले जाएं, लेकिन कहीं देर ना होवे, पहुंचे जब स्कूल, समय लौटते देखेंगे कि, हैं ये कितने कूल, आपस में वो बातें करते, कितनी होगी मस्ती, जब पिल्लों के साथ करेंगे, दिनभर मटरगश्ती, समय लौटते लेकिन जैसे, पिल्ला एक उठाया, उन्हें लगा कि उनके पीछे, कोई है गुर्राया, मुड़ कर देखा होश उड़ गए, वो पिल्लों की मम्मी, पिल्ला छोड़के सरपट भागे, अपनी बुलाते मम्मी, किसी तरह से जान बचाकर, अपने घर को आए, छूट गया प्यारा सा पिल्ला, सुबक सुबक पछताए॥ Copyright @ दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्” 20.04.2023
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  द्वंद्व (कविता) दोहरी होती गयी हर चीज़ दोहरी होती जिंदगी के साथ. आस्थाएं, विश्वास, कर्त्तव्य आत्मा और फिर उसकी आवाज. एक तार को एक ही सुर में छेड़ने पर भी अलग-अलग परिस्थितियों में देने लगा अलग-अलग राग, जैसे वोह कोई और था और यह है और कोई साज़. अपने से द्वंद्व करते-करते खत्म करता रहा अपने ही दो हिस्से और झपटता रहा स्वयं पर ही बन कर चील, गिद्ध और बाज़. @दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम"
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मातृभाषा   थकती हैं संवेदनाएँ जब तुम्हारा सहारा लेता हूँ, निराशा भरे पथ पर भी तुमसे ढाढ़स ले लेता हूँ, अवसाद का जब कभी उफनता है सागर मन में मैं आगे बढ़कर तत्पर तेरा आलिंगन करता हूँ, सिकुड़ता हूँ शीत में जब कभी एकाकीपन की खींच लेता हूँ चादर सा तुम्हें गुनगुना मन कर लेता हूँ । ॰ ॰ जब कभी भी घबराता हूँ अन्जान अक्षरों की भीड़ में, ओ माँ, मेरी मातृभाषा, तेरी गोद में जा धमकता हूँ ।।  @नील पदम् 
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            दवैर की लड़ाई                      वर्ष 1582, दवैर की लड़ाई परमवीर महाराणा प्रताप की छोटी सी सेना और एक लाख से अधिक नफ़री वाली मुगल सेना के बीच हुई थी। इस हार के पश्चात मुगलों ने कभी महाराणा प्रताप से टकराने की हिम्मत नहीँ की। 1576 का हल्दीघाटी युद्घ हारने के पस्चात, महाराणा के सिर्फ 7000 सैनिक ही बचे थे परंतु महाराणा ने सिर्फ 6 वर्ष पश्चात ही दशहरा के दिन मुगलों पर आक्रमण कर दिया और मुगलों को खदेड़ दिया। इस युद्ध में 36000 मुगल सैनिकों को पकड़ लिया गया था । उससे पहले लाखों की सैन्य शक्ति वाले 6 मुगल हमलों को विफल किया था। हल्दीघाटी में हारने के बाद भी महाराणा प्रताप ने कभी भी मुगलों को शान्ति से नहीं बैठने दिया था। 1582 के दवैर के विजयादशमी पर किये आक्रमण मे राणा ने अकबर की विशाल सेना को हराकर राजस्थान की सभी चौकियों को वापस छीन लिया था और फिर करीब 20 वर्ष तक महाराणा प्रताप का राज्य था इस भूभाग पर। आज महाराणा प्रताप की जयंती पर उन्हें गर्व के साथ नमन करता हूँ।      महाराणा प्रताप हमेशा मेरे पसंदीदा नायक रहे हैं। उनका स्वाभिमान और मातृभूमि के प्रति अगाध प्रेम मुझे गर्
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अनोखा कूलर  किसने ये 80 के दशक का कूलर देखा है। इसमें ऊपर वाली टंकी में पानी भरने के बाद उसमें लगा नल खोलने पर पानी कूलर के पैड में टॉप के छिद्रों से पहुंचता था। ये पानी एक बाल्टी या टब में एकत्र होता था। इस पानी को दोबारा ऊपर वाले टैंक में उड़ेल दिया जाता था । किसी पम्प की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। पंखे के लिए अंदर ही एक टेबल फैन रख जाता था। जब मम्मी घर के सारे काम निपटा कर आराम करती थीं, तो मैं दिन भर इसमें नीचे टब में इकठ्ठा हुआ पानी ऊपर वाली टंकी में डालता रहता था और मस्त ठंडी हवा आती रहती थी। और हाँ, इस कूलर की टंकी में दिन भर नाँव तैराया करता था । शाम होते ही दोस्त यार आ जाते थे फिर दो तीन घंटे जम कर खेल कूद होता था। क्या मस्त बचपन था हमारा , बहुत मस्त । ये कूलर का चित्र अपनी उसी बचपन की याद से बनाया है । बताइए ना, कैसा लगा?